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स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुईमेरे कानों को लगा सखी, दरवाज़े पे कोई दस्तक हुईधक्-धक

जब साजन ने खोली मोरी अंगिया-1

स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुईमेरे कानों को लगा सखी,जबसाजननेखोलीमोरीअंगिया दरवाज़े पे कोई दस्तक हुईधक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री, खोल दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद कियाहोंठों को होंठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.फिर साजन ने, सुन री ओ सखी, फव्वारा जल का खोल दियाभीगे यौवन के अंग-अंग को होंठों की तुला में तौल दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.कंधे, स्तन, कमर, नितम्ब कई तरह से पकड़े, मसले और छोड़े गएगीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गएजल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.मैं विस्मित सी, सुन री ओ सखी, साजन की बाँहों में सिमटी रहीसाजन ने नख से शिख तक ही होंठों से अति मुझे प्यार कियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.चुम्बनों से मैं थी दहक गई, जल-क्रीड़ा से बहकी मैं सखीबरबस झुककर स्व मुख से मैंने साजन के अंग को दुलार कियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गएमैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान कियामैंने कन्धों पे पाँव को रख रस के द्वार को खोल दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहासाजन के होंठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ-ओर हिलौर दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लियामैंने भी उसकी कमर को अपनी जंघाओं में फँसाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजीउसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश कियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जातेचार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जातेमेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.जैसे वृक्षों से लता, सखी, मैं साजन से लिपटी थी योंसाजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.नितम्बों को वह हाथों से पकड़े स्पंदन को गति देता थामेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता थामैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमें ही समा जाएँहोठों में होंठ, सीने में वक्ष आवागमन अंगों ने खूब कियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.कहते हैं कि जल से, री सखी, सारी गर्मी मिट जाती हैजितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढ़ाए दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.वह कंधे पीछे ले गया, सखी, सारा तन बाँहों पर उठा लियामैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खींच लियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लियाअंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम कियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थेजल में भीगे उत्तेजक क्षण मृदंग की ध्वनि बजाते थेसाजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखीउसके अंग के फव्वारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!.फव्वारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुएसाजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुएमैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होंठों पर लगाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया!

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