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मोहसिन रजा की जगह दानिश अंसारी, मुस्लिमों पर बीजेपी की बदली रणनीति का संकेत है ये ताजपोशी

时间:2023-09-20 17:40:44 出处:रॉयल चैलेंजर्स阅读(143)

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से योगीराज कायम हो गया है. योगी 2.0 मंत्रिमंडल से कई पुराने और प्रमुख चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए बीजेपी ने अलग-अलग समाज केनए चेहरों को मंत्री बनाया है. इस तरह बीजेपी नेभविष्य की सियासत का खाका खींचा है. सीएम योगी के पहले कार्यकाल में एकमात्र मुस्लिम मंत्री रहे मोहसिन रजा की छुट्टी कर दानिश आजाद अंसारी के रूप में युवा मुस्लिम चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल किया है. मोहसिन रजा की जगह दानिश अंसारी की ताजपोशी,मोहसिनरजाकीजगहदानिशअंसारीमुस्लिमोंपरबीजेपीकीबदलीरणनीतिकासंकेतहैयेताजपोशी मुस्लिम सियासत पर बीजेपी के बदलते स्टैंड का सियासी संदेश भी दे रही है.दानिश आजाद अंसारी को योगी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर बीजेपी ने अब मुस्लिम सियासत की नई सियासी लकीर खींचने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है.मोहसिन रजाकी योगी कैबिनेट से छुट्टी कर मुस्लिम ओबीसी समुदाय से आने वाले दानिश अंसारी को शामिल किया गया है. इस तरहबीजेपी ने 2024 की सियासी बिसात बिछाने का प्रयास करते हुए पसमांदा मुस्लिम समाज को सम्मान देने का संदेश दिया है.दानिश को योगी सरकार में मंत्री पद देकर बीजेपी की तरफ से सूबे कीमुस्लिम पिछड़ी जातियों (पसमांदा समाज) को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि मोदी-योगी सरकार की गरीब कल्याण योजनाओं का लाभ ही मुस्लिम पिछड़ी जातियों को नहीं दिया जा रहा है, बल्कि पार्टी उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी भी देने को तैयार है. बीजेपी का यह कदम,मुस्लिमों केबीच अपनी पैठ बनाने का बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है.बता दें कि बीजेपी भले ही हिंदुत्व की राजनीति करती रही हो, लेकिन मुस्लिमों के एक तबके को उसने अपने साथ रखा.है. संगठन से लेकर लेकर सत्ता तक में हिस्सेदारी देती रही है. हालांकि, बीजेपी का फोकस शिया मुस्लिम और सवर्ण मुस्लिम तक ही सीमित रहा है.बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर अटल-आडवाणीके दौर में आरिफ बेग और सिकंदर बख्त पार्टी के मुस्लिम चेहरेहुआ करते थे तो मौजूदा समय में मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन की तूती बोलती है. ऐसे ही यूपी में एजाज रिजवी, गैरुल हसन रिजवी से लेकर आरएस उस्मानी, मोहसिन रजा और बुक्कल नवाब हैं. बीजेपी के ये सभी नेता मुस्लिम समाज में अगड़े तबके से आते हैं.बीजेपी में रहते हुए इन तमाम नेताओं को मुस्लिम प्रतिनिधित्व मिला. पार्टी संगठन में ऊंचे पदों पर रहे तो एमएलसी बनने से लेकर मंत्री और राष्ट्रीय और प्रदेश के आयोग में चेयरमैन व सदस्य रहे. मुस्लिम समुदाय के ये अगड़े नेता बीजेपी के संगठन से लेकर सत्ता के ऊंचे-ऊंचे पद पर रहे, पर मुस्लिम समुदाय के दिलों में कमल खिलाने में सफल नहीं रहे. पीएम मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद बीजेपीमस्लिम सियासत को लेकर एक बड़ा सियासी प्रयोग कर रही है, जिसमें उसने अगड़े मुस्लिमों के बजाय पसमांदा मुस्लिमों पर फोकस किया है. बशर्ते उन्हें राष्ट्रवादी सरोकारों केसाथ पार्टी कसौटी पर खरा उतरना होगा.योगी सरकार के कैबिनेट से मोहसिन रजा की छुट्टी इसीलिए कर दी गई, क्योंकि पांच साल तक मंत्री रहते हुए किसी तरह का कोई सियासी प्रभाव नहीं छोड़ सके. राजनीतिक विश्वलेषकों की मानें तो मोहसिन रजा अपने शिया समुदाय को भी बीजेपी के साथ जोड़े रखने में कामयाब नहीं रहे. इसका नतीजा है कि बीजेपी ने लखनऊ में एक सीट अपनी गंवा दी है जबकि मोहसिन रजा खुद भी लखनऊ के हैं. इसके अलावा पांच साल तक मोहसिन रजा मुस्लिम समुदाय के बीच बीजेपी के लिए सियासी आधार मजबूत करने के बजाय बयानबाजी करते रहे. इस बार के चुनाव में मुस्लिमों का करीब 85 फीसदी वोट सपा को गया माना जा रहा है, जो अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है. वहीं, बीजेपी को महज आठ फीसदी मुस्लिम वोट मिला है.हालांकि, लखनऊ का शिया समुदाय एक समय तक बीजेपी के पक्ष में वोट करता रहा है. अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लालजी टंडन और राजनाथ सिंह के लिए उन्होंने वोटकिया, लेकिन इस बार साथ नहीं रहा. ऐसे में बीजेपी ने ओबीसी मुस्लिम वोटों को साथ जोड़ने की दिशा में मोहसिन रजा की जगह दानिश आजाद को कैबिनेट में एंट्री दी है. यूपी चुनाव के दौरान बीजेपी का शीर्ष नेतृत्वपसमांदा वोटों को साधने के लिए तमाम सियासी संदेश देता नजर आया.केशव मौर्य ने कहा था कि सपा ने पसमांदा मुस्लिम को सिर्फ ठगा है और बीजेपी ने उन्हें सरकारी योजनाओं को लाभ देने का काम किया है.मुस्लिमों में सबसे बड़ी आबादी यूपी में अंसारी समुदाय की है, लेकिन सत्ता में भागेदारी उनकी आबादी से कम है. ऐसे ही पसमांदा समुदाय की दूसरी जातियों कीजगह मुस्लिम समुदाय की सवर्ण जातियां शेख, पठान, सैय्यद, मुस्लिम राजपूत और मुस्लिम त्यागी हावी हैं. ऐसे में बीजेपी की नजर ओबीसी मुस्लिम समुदाय पर है, जिन्हें साधने के लिए तमाम कवायद कर रही है. इसी कड़ी में अब योगी सरकार में अंसारी समुदाय से आने वाले दानिश आजाद को मंत्री बनाकर बड़ा सियासी दांव पार्टी ने चल दिया है.बीजेपी ने मुस्लिमों की पिछड़ी जातियों (पसमांदा मुस्लिमों) पर खास फोकस कर रखा है, जिसका असर भले ही अभी न दिखे पर आने वाले समय में गहरी पैठ बन सकती है. यही वजह है बीजेपी ने मुस्लिमों के वंचित समुदाय के लोगों कोसरकार में मंत्री, आयोग और पार्टी संगठन में तवज्जो देकर उनके बीच गहरी पैठ बनाने की कवायद शुरू कर दी है. योगी सरकार के 2.0 में दानिश आजाद अंसारी को शामिल करने के पीछ बीजेपी की इसी राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है.हालांकि, ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने पहली बार किसी पसमांदा मुस्लिम को सत्ता में प्रतिनिधित्व दिया हो बल्कि 2014 में पीएम मोदी के आने के बाद से बीजेपी उनपर मेहरबान रही है. मुस्लिम पिछड़ी जातिके गाड़ा बिरादरी से आने वाले आतिफ रशीद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष हैं, जो पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से आते हैं. यूपी अल्पसंख्यक आयोग की कमान अशरफ सैफी के हाथों में है, जो पिछड़ी जाति के बढ़ई समाज से आते हैं.ऐसे ही यूपी मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार जावेद पसमांदा मुसलमानों में अंसारी समुदाय से आते हैं. बीजेपी का यह प्रयोग उत्तर प्रदेश में चुनाव में सफल रहा है. 8 फीसदी मुसलमानों ने योगी आदित्यनाथ को दुबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट किया है. परंपरागत मुस्लिम राजनीति को देखते हुए यह आंकड़ा कुछ लोगों को चौंका सकता है, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना, राशन योजना और पेंशन योजना का सबसे बड़ा लाभ पसमांदा मुसलमानों को ही हुआ है. प्रधानमंत्री आवास योजना के 80 फीसदी लाभार्थी पसमांदा समाज के मुसलमान ही हैं, जिन गरीब मुसलमानों के लिए घर एक सपना हुआ करताथा, नरेंद्र मोदी सरकार ने उसे एक हकीकत में तब्दील करने का काम किया है.मोदी-योगी ने पसमांदा मुसलमानों के बीच पैठ बनाने के लिए उन्हेंआर्थिक तौर पर सक्षम बनाने का काम किया. रोजगार के लिए रामपुर-वाराणसी से लेकर दिल्ली तक अनेक बार हुनर हाट का आयोजन किया गया. इन हुनर हाटों में सबसे ज्यादा प्राथमिकता उन कारीगरों को ही दी जाती है जो अपने हाथ से काम करने वाले कारीगर रहे हैं, जिसका फायदा पसमांदा मुस्लिम को मिला है. खासकर, इसमें अंसारी समाज का एक बड़ा वर्ग आता है. मुस्लिम समाज के पिछड़े वर्गों का नाता दस्तकारी और दूसरी तरह की हुनरमंदी से है.दरअसल, हिंदू समुदाय के कारीगर वर्ग अब ज्यादातर नौकरी पेशा होने को प्राथमिकता देने लगे हैं, लेकिन मुसलमानों के बीच अभी भी हाथ के कारीगर भारी संख्या में मौजूद हैं. इन हुनर हाटों का सबसे ज्यादा फायदा उन्हें ही हो रहा है, उनका कारोबार आगे बढ़ रहा है और इन बाजारों के जरिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच भी मिल रहा है. हुनर हाट के जरिए कहार, कुम्हार, कुंदजा, गुज्जर, गद्दी-घोसी, कुरैशी, जोगी, माली, तेली, दर्जी, नट, बंजारा, बढ़ई, चूड़ीदार, जुलाहा, मंसूरी, धुनिया, रंगरेज, लोहार, हज्जाम, धोबी, मोची, राजमिस्तरी जैसे समुदायों को बीजेपी ने केंद्रित किया.माना जाता है कि तीन तलाक के खिलाफ कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं को साथ लेने की सबसे पहली कोशिश हुई, जिसका कुछ लाभ पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ था. 2022 के यूपी चुनाव में भी बीजेपी ने मुस्लिम इलाकों में अपनी पकड़ बनाई है. मुस्लिम समाज का यही वोटर चुपचाप बीजेपी के लिए मतदान किया है, जिसका नतीजा है कि 8 फीसदी मुस्लिम वोट योगी को दोबारा से सीएम बनाने के लिए पड़े हैं.मुस्लिम समुदाय में 80 फीसदी आबादी पसमांदा मुसलमानों की है, जिनकाराजनीतिक में प्रतिनिधित्व बहुत कम है. ऐसे में बीजेपी उन्हें अब सत्ता में भागीदारी देकर जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. मुसलमानों में सबसे बड़ी संख्या अंसारी बिरादरी की है, जिसे यूपी के पार्टी अल्पसंख्यक संगठन में अच्छी खासी जगह दी गई है. इसके अलावा मुसलमानों के अल्वी और अब्बासी समुदाय को भी शामिल किया गया है. बीजेपी ने सियासी तौर पर अंसारी समाज को सरकार में प्रतिनिधित्व दिया है तो अल्वी और अब्बासी समुदाय को संगठन में रखा है. पसमांदा मुसलमानों ने इसे राजनीति में अपने पैर जमाने के मौके के तौर पर लिया तो बीजेपी को मुस्लिम समाज में अपनी जगह बनाने का बड़ा मौका मिल सकता है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी का यह सियासी प्रयोग कितना सफल रहता है?

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