प्रेषक : ?भगवानमुझेएकसालीदो।?तुम श्लील कहो, अश्लील कहोचाहो तो खुलकर गाली दो !तुम भले मुझे कवि मत मानोमत वाह-वाह की ताली दो !पर मैं तो अपने मालिक से…हर बार यही वर माँगूँगा-तुम गोरी दो या काली दोभगवान मुझे इक साली दो !सीधी दो, नखरों वाली दोसाधारण या कि निराली दो,चाहे बबूल की टहनी दोचाहे चंपा की डाली दो।पर मुझे जन्म देने वालेयह माँग नहीं ठुकरा देना-असली दो, चाहे जाली दोभगवान मुझे एक साली दो।वह यौवन भी क्या यौवन हैजिसमें मुख पर लाली न हुई,अलकें घूँघरवाली न हुईंआँखें रस की प्याली न हुईं।वह जीवन भी क्या जीवन हैजिसमें मनुष्य जीजा न बना,वह जीजा भी क्या जीजा हैजिसके छोटी साली न हुई।तुम खा लो भले प्लेटों मेंलेकिन थाली की और बात,तुम रहो फेंकते भरे दाँवलेकिन खाली की और बात।तुम मटके पर मटके पी लोलेकिन प्याली का और मजा,पत्नी को हरदम रखो साथ,लेकिन साली की और बात।पत्नी केवल अर्द्धांगिनी हैसाली सर्वांगिनी होती है,पत्नी तो रोती ही रहतीसाली बिखेरती मोती है।साला भी गहरे में जाकरअक्सर पतवार फेंक देतासाली जीजा जी की नैयाखेती है, नहीं डुबोती है।विरहिन पत्नी को साली हीपी का संदेश सुनाती है,भोंदू पत्नी को साली हीकरना शिकार सिखलाती है।दम्पति में अगर तनावरूस-अमरीका जैसा हो जाए,तो साली ही नेहरू बनकरभटकों को राह दिखाती है।साली है पायल की छम-छमसाली है चम-चम तारा-सी,साली है बुलबुल-सी चुलबुलसाली है चंचल पारा-सी ।यदि इन उपमाओं से भी कुछपहचान नहीं हो पाए तो,हर रोग दूर करने वालीसाली है अमृतधारा-सी।मुल्ला को जैसे दुःख देतीबुर्के की चौड़ी जाली है,पीने वालों को ज्यों अखरीटेबिल की बोतल खाली है।चाऊ को जैसे च्याँग नहींसपने में कभी सुहाता है,ऐसे में खूँसट लोगों कोयह कविता साली वाली है।साली तो रस की प्याली हैसाली क्या है रसगुल्ला है,साली तो मधुर मलाई-सीअथवा रबड़ी का कुल्ला है।पत्नी तो सख्त छुहारा हैहरदम सिकुड़ी ही रहती हैसाली है फाँक संतरे कीजो कुछ है खुल्लमखुल्ला है।साली चटनी पोदीने कीबातों की चाट जगाती है,साली है दिल्ली का लड्डूदेखो तो भूख बढ़ाती है।साली है मथुरा की खुरचनरस में लिपटी ही आती है,साली है आलू का पापड़छूते ही शोर मचाती है।कुछ पता तुम्हें है, हिटलर कोकिसलिए अग्नि ने छार किया ?या क्यों ब्रिटेन के लोगों नेअपना प्रिय किंग उतार दिया ?ये दोनों थे साली-विहीनइसलिए लड़ाई हार गए,वह मुल्क-ए-अदम सिधार गएयह सात समुंदर पार गए।किसलिए विनोबा गाँव-गाँवयूँ मारे-मारे फिरते थे ?दो-दो बज जाते थे लेकिननेहरू के पलक न गिरते थे।ये दोनों थे साली-विहीनवह बाबा बाल बढ़ा निकला,चाचा भी कलम घिसा करताअपने घर में बैठा इकला।मुझको ही देखो साली बिनजीवन ठाली-सा लगता है,सालों का जीजा जी कहनामुझको गाली सा लगता है।यदि प्रभु के परम पराक्रम सेकोई साली पा जाता मैं,तो भला हास्य-रस में लिखकरपत्नी को गीत बनाता मैं?