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''हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र और

कन्हैया कुमार, दिशा रवि से हार्दिक पटेल तक...देश में ये हैं राजद्रोह के चर्चित मामले

''हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार नहीं किया जाता है,कन्हैयाकुमारदिशारविसेहार्दिकपटेलतकदेशमेंयेहैंराजद्रोहकेचर्चितमामले तब तक केंद्र और राज्य सरकारें केस दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जबरन कदम उठाने से परहेज करेंगी'' यह बात सुप्रीम कोर्ट ने 1870 में बने यानी 152 साल पुराने राजद्रोह कानून (IPC की धारा 124-ए) पर रोक लगाते हुए बुधवार को कही.सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने धारा 124-ए यानी राजद्रोहकानून की री-एग्जामिन (पुनरीक्षण) प्रोसेस पूरी होने तक इस पर रोक लगाने का फैसला किया है. कोर्ट ने केंद्र को कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दी है.धारा 124 A के मुताबिक, ''लिखित या फिर मौखिक शब्‍दों, या फिर चिह्नों या फिर प्रत्‍यक्ष या परोक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करने पर राजद्रोहका मामला दर्ज किया जाता है. इसके तहत दोषी को 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.'' धारा 124 A के मुताबिक, सरकार की मानहानि 'राजद्रोह', वहीं देश की मानहानि 'देशद्रोह होता है.' लेकिन राजद्रोह और देशद्रोह के भेद को दरकिनार कर ज्यादातर मामलों में, सरकार को ही देश माना जाने लगा है.भारत में राजद्रोहकानून अंग्रेजों के शासन में शुरू हुआ था. 1870 में अंग्रेजों ने भारतीय क्रांतिकारियों को शांत करने के लिए आईपीसी में संशोधन किया और धारा 124A को जोड़ा. इस धारा का इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने और सेनानियों को गिरफ्तार करने के लिए किया जाने लगा. इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी, भगत सिंह और बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ हुआ था.राजद्रोहकानून को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं. 2014 में एनडीए की सरकार बनने के बाद यह लगातार चर्चा में रहा. इतना ही नहीं मोदी सरकार पर विपक्ष इसका गलत इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाता रहा है. यहां तक सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में राजद्रोहकानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था, ''ये एक औपनिवेशिक कानून है. ये स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था. इसी कानून का इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर के खिलाफ किया गया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है.''तमिलनाडु में जयललिता के सीएम रहते 2011 से 2013 के बीच कुंडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट के आस पास के गांवों के करीब 10000 प्रदर्शनकारियों पर राजद्रोहसमेत विभिन्न धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए थे. दरअसल, कुंडनकुलम में साल 2000 में न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने की शुरुआत हुई थी. इसका लगातार विरोध भी होता रहा. लेकिन 2011 में यह विरोध तेज हो गया. इसके बाद राज्य सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के आदेश दिए. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए. कई को हिरासत में लिया गया. कुछ को गिरफ्तार भी किया गया, ताकि इन विरोध प्रदर्शनों को शांत किया जा सके.तमिलनाडु में एमके स्टालिन ने सत्ता में आने के बाद चेन्नई सालेम एक्सप्रेसवे और न्यूक्लियर पावर प्लांट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से जुड़े सभी केस वापस लेने का फैसला किया था.इसके बाद 2019 में झारखंड में आदिवासियों के खिलाफ बड़ी पैमाने पर राजद्रोहके मामले दर्ज किए गए. झारखंड के खूंटी में आदिवासियों ने आंदोलन चलाया था. यह आंदोलन काफी हिंसक हो गया था. इस दौरान आदिवासियों और पुलिस के बीच हिंसक संघर्ष भी हुआ. ऐसे में पुलिस ने 121A और 124A के तहत कई केस दर्ज किए. उस वक्त खूंटी पुलिस ने बयान जारी कर बताया था कि खूंटी पुलिस ने बयान जारी कर कहा था कि पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले (121A और 124A के तहत) दर्ज किए गए हैं, जिसमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया है. हालांकि, पुलिस ने यह नहीं बताया था कि 124A के तहत इनमें से कितने मामले दर्ज हुए हैं. दरअसल, उस वक्त मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि पुलिस ने 10000 आदिवासियों पर राजद्रोहका मामला दर्ज किया है. हालांकि, पुलिस ने इसका खंडन कर दिया था.*आंकड़े एनसीआरबी के डेटा से लिए गए हैं : जेएनयू राजद्रोहका मामला फरवरी 2016 का है. इस दिन जेएनयू में छात्रों का मजमा लगा था. इसी कार्यक्रम के दौरान भारत विरोधी नारे लगाए जाने का आरोप है. इस मामले में तत्कालीन जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्‍हैया कुमार, उमर खालिद समेत कुल 10 लोग आरोपी हैं, जिनके खिलाफ पुलिस ने पिछले साल चार्जशीट दाखिल की थी.एक्टिविस्ट दिशा रवि के खिलाफ किसानों आंदोलन को लेकर टूलकिट शेयर करने के आरोप में राजद्रोहका केस दर्ज हुआ था. उन्हें बेंगलुरु से गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया था. हालांकि, उन्हें सिर्फ दिन में जमानत मिल गई थी. कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए कहा था कि नागरिक किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में सरकार के विवेक के रखवाले होते हैं. उन्हें केवल इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता क्योंकि वे राज्य की नीतियों से असहमत होते हैं. गुजरात में 2015 में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था. इस आंदोलन के दौरान काफी हिंसा हुई थी. गुजरात पुलिस ने पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ राजद्रोहका केस दर्ज किया था. आरोप था कि अहमदाबाद में पाटीदार आरक्षण के समर्थन में रैली के बाद तोड़फोड़ और हिंसा फैली थी.: पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के एक स्थानीय भाजपा नेता ने उनके यूट्यूब शो को लेकर केस दर्ज कराया था. सुप्रीम कोर्ट ने 3 जून 2021 को दुआ को बड़ी राहत देते हुए राजद्रोहके मामले को खारिज कर दिया था.: केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन और तीन अन्य लोगों पर यूपी पुलिस ने अक्टूबर 2020 में राजद्रोहका मामला दर्ज किया था. कप्पन को हाथरस जाते वक्त गिरफ्तार किया था. पुलिस का आरोप था कि कप्पन समेत चारों लोग हाथरस में हिंसा फैलाने की साजिश के तहत जा रहे थे. इसके अलावा उमर खालिद और शरजील इमाम, गौतम नवलखा, रोना विल्सन और शोमा सेन समेत तमाम लोग अभी भी राजद्रोहके आरोप में जेल में हैं.

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