मैं और तुम कभी आशना थे
时间:2023-09-19 00:50:29 出处:शाइस्ता परवीन阅读(143)
पिछली रात तेरी यादों की झड़ी थीमन भीग रहा थाजैसे-जैसे रात बढ़ती थीचाँद से और जागा नहीं जा रहा था…बेचारी नींद!!!आँखों से यूँ ओझल थीजैसे कि कुछ खो गया हो उसकाजब आँखों में नींद ही नहीं थीतो क्या करता…?मैंऔरतुमकभीआशनाथेतुम में मुझमें जो कुछ थाउसे तलाशता रहा सारी रातसारी कहानी उधेड़कर फिर से बुनी मैंनेतुमने कहाँ से शुरु किया थाकुछ ठीक से याद नहीं आ रहा थानोचता रहा सारी रात अपने ज़ख़्मों कोज़ख़्म ही कहना ठीक होगादर्द-सा हो रहा थासाँस बदन में थम-थम के आ रही थीकभी आँसू कभी ख़लिशतुमने ग़लत किया – या मुझसे ग़लत हुआकोई तो रिश्ता थाजिसमें साँस आने लगी थीमगर किसी की नज़र लग गयी शायद…साँस तो आ चुकी थी मगररिश्ता वो अभी नाज़ुक़ थाअगर मैं कुछ कहता तो तुम कुछ न सुनतीन कुछ मैं समझने के मन से थावक़्त बीतता रहाजो तुम कर सकती थी – तुमने कियाजो मैं कर सकता था – मैं कर रहा हूँफिर भी तुम्हारी आँखों का सूखा नमकयादों की गर्द के साथ उड़ता हुआमेरे ताज़ा ज़ख़्मों को गला रहा हैजाने किसका कसूर हैजिसको तुम भुगत रही होजिसको मैं भुगत रहा हूँएक दोस्ती से ज़्यादा तो मैंने कुछ नहीं चाहातुमको जितना दियातुमसे जितना चाहा…सब दोस्ती की इस लक़ीर के इस जानिब थावो कैसा सैलाब था?जिसमें तुम उस किनारे जा लगेमैं इस किनारे रह गयाऔर हमेशा यही सोचता रहाकि तुम मिलो तो तुम्हें ये एहसास कराऊँकि तुमने क्या खोयामैं सचमुच नहीं जानता कितुम किस बात से नाराज़ हो,तुम्हारे ख़फ़ा होने की वजह क्या है?मगर ये एहसास-सा है मुझकोकि तुम किसी बात के लिए कसूरवार नहीं होअगर मैं ये समझता हूँतुम इसे सोचती होतो दरम्याँ यह जो एक रास्ता हैतुम्हें दिखायी क्यों नहीं देतापहले अगर तुमने पिछली दफ़ा बात की थीतो इस दफ़ा क्यों नहीं करतीक्या वो दोस्ती फिर साँस नहीं ले सकतीक्या इन ज़ख़्मों का कोई मरहम नहींक्यों वो मुझे इस तरह से देखती हैजैसे कि तुम उससे कहती हो“ज़रा देखकर बताना तो! क्या वो इधर देखता है?”अगर मेरे पिछले दो ख़ाब सच हुए हैंतो ज़रूर मेरे ऐसा लगने मेंकुछ तो सच ज़रूर छिपा होगामैंने कई बार महसूस किया हैतुमको मेरी आवाज़ बेकस कर देती हैतुम थम जाती हो, ठहर जाती होकोशिश करते-करते रह जाती होकि न देखो मुझको-मगर वो बेकसी कि तुम देख ही लेती होमैं कल भी वही थामैं आज भी वही हूँमुझे लगता है कि तुम भी नहीं बदलीफिर क्यों फर्क़ आ गया हैतुम्हारे नज़रिए में-मैं जानता हूँ ये नज़रिया बनावटी है, झूठा हैआइने की तरह तस्वीर उलट के दिखाता हैकभी-कभी ख़ुद को समझ पानाकितना मुश्किल होता हैऐसे में दूसरों का सच परखना सचमुच मुश्किल हैमैं यहाँ आकर आधी राह परसिर्फ़ तुम्हारे लिए ठहर गया हूँआधा चलकर मैं आ गया हूँबाक़ी फ़ासला तुम्हें कम करना हैमेरी आँखों में पढ़ लो सच-ये अजनबी तो नहींकभी तो तुम भी इनसे आशना रह चुकी होसारी बात झुकी हुई आँखों में हैअपनी होटों से कह दो-‘मैं और तुम कभी आशना थे!’
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